Sunday, March 14, 2010

ये ना थी हमारी किस्मत - गालिब

( ऑडीओ - व्हीडीओ सहित )
ये ना थी हमारी किस्मत के विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इन्तजार होता...

तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
के ख़ुशी से मर ना जाते यही एतबार होता...

ये कहाँ की दोस्ती के बने हैँ दोस्त नासेह,
कोई चारसाज़ होता कोई गमगुसार होता...

रग-ए-संग से टपकता वो लहू के फिर न थमता,
जिसे गम समझ रहे हो ये अगर शरार होता....

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क-ए-दरिया,
ना कभी ज़नाजा उठता ना कहीं मजार होता...

तेरी नाज़ुकी से जाना के बंधा था एहद- बुदा,
कभी तू न तोड़ सकता गर ऊसतुवार होता...

उसे कौन देख सकता के यगाना है या यक्ता,
जो दुई की बू भी होती तो कहीं दो चार होता...

कहूँ किस से मैं की क्या है शब-ए-गम बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता...

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को,
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता...

ये मिसाल-ए-तस्व्वुफ़ ये तेरे बयान गालिब,
हम तुझे वली समझते, जो न बादाख्वार होता...

( ye na thi hamari kismat )

No comments:

Post a Comment

Please comment. Your review is very important for me.